भारतीय सरकार न्यूक्लियर पावर
आपने देखा होगा की पिछले कुछ सालों से भारतीय सरकार न्यूक्लियर पावर को बहुत ही बढ़ावा दे रही है।
इस लिए कल ही खबर आई है की भारतीय सरकार ने साल 2047 के लिए एक नया टारगेट रखा है। जब हम आजादी के 100 साल पूरे होने का जश्न मनाएंगे, उस समय पूरे भारत की 9% इलेक्ट्रिसिटी न्यूक्लियर पावर प्लांट से ही जेनरेट हो।
अभी के समय हमारी केवल 3.15% इलेक्ट्रिसिटी न्यूक्लियर पावर प्लांट से जेनरेट हो रही है।
मोटे तौर पर आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि न्यूक्लियर पावर प्लांट्स को थर्मल पावर प्लांट्स भी कहा जाता है, जिनमें यूरेनियम फ्यूल्स की मदद से नुक्लेअर ऐक्टर्स के अंदर नुक्लेअर फैशन और चेन रिएक्शन करवाई जाती है, जिसे हिट जेनरेट होती है ऐंड उससे स्टीम पैदा की जाती है और उसे इस टीम की मदद से स्टीम टरबाइन स् रन होते हैं जिसे इलेक्ट्रिसिटी पैदा होती है।
ना सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के कई सारे डेवलपट और नॉन डेवलपिंग कंट्री ज़ अपने देश में नए नए न्यूक्लियर पावर प्लांट्स बना रहे हैं। अमेरिका में भी आज की डेट में 20% इलेक्ट्रिसिटी न्यूक्लियर पावर प्लांट से जेनरेट होती है और दुनिया में सबसे ज्यादा नंबर में न्यूक्लियर पावर प्लांट्स अमेरिका में ही है। जबकि फ्रांस अपनी 70% इलेक्ट्रिसिटी न्यूक्लियर पावर प्लांट से ही जेनरेट करता है।
न्यूक्लियर पावर प्लांट्स
दुनिया में सबसे तेजी से नए न्यूक्लियर पावर प्लांट्स बना रहा है ऐंड चाइना के पीछे पीछे सेकंड नंबर के ऊपर है भारत भारतीय सरकार साल 2031 तक देश में 21 न्यूक्लियर पावर प्लांट्स कंस्ट्रक्ट करने वाली है, जिसमें 20 से 25 बिलियन डॉलर तक का खर्च आएगा। न्यूक्लियर पावर के बारे में कहा जाता है कि इसका सबसे कम कार्बन फुटप्रिंट होता है जो कि क्लाइमेटचेंज और ग्रीन हाउस गैस के पर्सपेक्टिव से सबसे क्लीन माना जाता है। यानी इसे वातावरण और पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचता है। न्यूक्लियर पावर का सीओटू एमिशन रेट सोलर एनर्जी से भी चार गुना कम होता है।
इसलिए न्यूक्लियर पावर प्लांट से जेनरेट होने वाली इलेक्ट्रिसिटी को कार्बन फ्री इलेक्ट्रिसिटी भी कहा जाता है। अब सोचने वाली बात ये है की जब भारत, अमेरिका, फ्रांस और चाइना जैसे देश इलेक्ट्रिसिटी के लिए न्यूक्लियर पावर प्लांट्स के ऊपर अपनी निर्भरता को इतना बढ़ा रहे हैं तो फिर जर्मनी को क्या हो गया है? रिफरेन्स के लिए आपकी स्क्रीन के ऊपर हिंदुस्तान टाइम्स के आर्टिकल का स्क्रीनशॉट है, जिसके मुताबिक जर्मनी अपने आखिरी के तीन न्यूक्लियर पावर प्लांट्स को बंद करने जा रहा है। 15 अप्रैल को जर्मनी अपने लैस्ट तीनों न्यूक्लियर पावर प्लांट्स को बंद कर देगा। वैसे तो जर्मनी अपने ये प्लांट्स पिछले साल 31 दिसंबर 2022 में ही बंद करने वाला था।
ऑयल की मार्केट में डिसरप्शन
लेकिन क्रूड ऑयल की मार्केट में डिसरप्शन के चलते डेट को एक स्टैंड करके 15 अप्रैल तक कर दिया गया था। और जर्मनी का ये फैसला ऐसे समय के ऊपर आया है जब रशिया यूक्रेन युद्ध के कारण गैस और इलेक्ट्रिसिटी प्राइजेस ऑलरेडी पिक के ऊपर है। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि साल 1997 में जर्मनी की 30-31 परसेंट इलेक्ट्रिसिटी न्यूक्लियर पावर प्लांट से ही जेनरेट हुआ करती थी। पिछले साल भी जमुनी की 6% इलेक्ट्रिसिटी इन्हीं तीन न्यूक्लियर पावर प्लांट से आई थी।
अब सोचने वाली बात ये है की साल 1997 के बाद से जर्मनी एक एक करके अपने सभी न्यूक्लियर पावर प्लांट्स आखिरकार क्यों बंद कर रहा है? विडिओ ज्यादा लंबी हो जाएगी इसलिए शॉट में समझेंगे। अब ये तो ऑब्वियस है की न्यूक्लियर पावर प्लांट से कुछ रिस्क भी होते हैं जो इनसे नुक्लेअर वेस्ट पैदा होता है, वो हाइली रेडियोएक्टिव होता है। उनको बहुत ही केर्फुल स्टोर और डिस्पोस ऑफ करना होता है। इसके अलावा नुक्लेअर ऐक्सीडेंट्स का भी बहुत ही बड़ा खतरा होता है, जिसकी वजह से आसपास के कई किलोमीटर में तबाही हो सकती है। लाखों लोग मारे जा सकते हैं और दर्शकों तक एनवायरनमेंट को नुकसान पहुंचता है।
गवर्नमेंट जर्मनी के अंदर एक के बाद एक न्यूक्लियर पावर प्लांट्स बना रही
ऐसे में जब जर्मनी की गवर्नमेंट जर्मनी के अंदर एक के बाद एक न्यूक्लियर पावर प्लांट्स बना रही थी, 1970 ज़ 19 एटीज़ में जर्मनी के आम लोग इसके खिलाफ़ खड़े हो गए थे ऐंड काफी ज्यादा प्रोटेस्ट किया जाने लगा। जर्मनी की गवर्नमेंट अभी भी अपने लोगों की बात नहीं मान रही थी क्योंकि न्यूक्लियर पावर प्लांट्स में उस समय रिस्क से ज्यादा बेनिफिटस लग रहे थे। लेकिन फिर 1986 में उस समय के सोवियत यूनियन के चरणों बिल न्यूक्लियर पावर प्लांट के फोर्थ रिएक्टर में ऐक्सिडेंट हो जाता है। कई लोगों की जान जाती है ऐंड गवर्नमेंट को न्यूक्लियर पावर प्लांट के 30 किलोमीटर के रेडियस में 3,30,000 लोगों को इवैल्यूएट करना पड़ता है।
डिज़ास्टर
जिन लोगों की जान गई वो तो छोड़ ही दो, लेकिन डिज़ास्टर के भी कई सालों बाद तक वहाँ के लोगों को हेल्थ कौन सी कौन सी स्पेस करने पड़े। इसके साथ ही जो साउथ जर्मनी का जो पार्ट था, उसके ऊपर काफी समय तक इस ऐक्सिडेंट के बाद रेडियोऐक्टिव क्लाउड्स भी बने रहे ऐंड जब वहाँ पर रेडियोऐक्टिव रेन हुई उसके कारण साउथ जर्मनी के बड़े हिस्से में रेडियोएक्टिव कॉन्टै मि। नेशन हो गई थी। ये सब देखने के बाद जर्मनी के लोग वहाँ पर काफी ज्यादा डर गए थे और चर्नोबिल ऐक्सिडेंट के बाद तो जर्मनी में एक बहुत ही बड़ा ऐन्टी न्यूक्लियर पावर कैंपेन चलाया गया, जिसमें वह के एनजीओ वगैरह सभी संगठन लोगों के 717 सड़कों के ऊपर आ गए थे।
जर्मनी की सरकार
जिसके बाद जर्मनी की सरकार ने डिसाइड किया की उन्होंने जीतने भी न्यूक्लियर पावर प्लांट्स बनाए हैं। उन सबको वो एक एक करके बंद कर देंगे। जर्मनी की पिछली चांसलर एंगेला मर्कल ने भी अपने कार्यकाल के दौरान तेजी से न्यूक्लियर पावर प्लांट्स को एक एक करके बंद किया था और अभी के चान्सलर वलास कॉल्स भी वही कर रहे हैं। नो डाउट की न्यूक्लियर पावर प्लांट के साथ ऐक्सिडेंट का रिस्क काफी ज्यादा है, लेकिन बेनिफिटस भी उसके काफी ज्यादा है। लेकिन इसके बेनिफिटस भी उससे ज्यादा है। आप नीचे कमेंट करके बताइए की क्या आप न्यूक्लियर पावर के पक्ष में हैं? हाँ या फिर ना