भारत के पास एक ऐसा हथियार है जिसके आगे अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और जापान जैसे ये बड़े बड़े डेवलप देश हार जाते हैं और ये हथियार है लो कॉस्ट मैन्युफैक्चरिंग। एक पर्टिकुलर आइटम को भारत में मैन्युफैक्चर करने में जितनी कॉस्ट आती है सम आइटम अमेरिका, फ्रांस या फिर जापान में कई गुना ज्यादा प्राइस के ऊपर मैनुफैक्चर होती है। वहाँ पर लेबर कॉस्ट काफी ज्यादा होती है। वर्कर्स को ज्यादा कॉम्पेन्सेशन मिलती है। कॉम्पोनेंट्स और रॉ मटीरीअल का प्राइस काफी ज्यादा होता है, ट्रांस्पोर्टेशन कॉस्ट ज्यादा पड़ती है जिसकी वजह से हर एक आइटम का सेलिंग प्राइस काफी ज्यादा बढ़ जाता है। इसलिए वेस्टर्न देशों की कई सारी कम्पनीज़ प्रॉडक्ट को खुद ही मैनुफैक्चर करने की बजाय भारत जैसे किसी दूसरे देश से परचेस करती हैं, उनको अपने देश में इंपोर्ट करती है और फिर मार्केट में सेल करती है।
इसी लो कॉस्ट मैन्युफैक्चरिंग के चलते रिसेंटली डिसॉल्ट एविएशन ने भारत की रिलायंस के साथ एक कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था। दोनों ने मिलकर एक जॉइंट वेंचर की शुरुआत की है, जिसका नाम रखा गया डिसॉल्ट रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड। नागपुर में एक मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाया गया और अब इसी मैन्युफैक्चरिंग प्लांट में राफेल फाइटर जेट्स के पांच कॉम्पोनेंट्स और फाल्कन 2000 फाइटर जेट्स के कई सारे पार्ट्स यहाँ पर मैनुफैक्चर होते हैं, जो फिर बाद में एक्सपोर्ट करके फ्रांस में भेजे जाते हैं और फिर वहाँ पर हर एक राफेल फाइटर जेट्स में इंटीग्रेट किए जाते हैं। फ्रांस के रिज़ल्ट एविएशन के बाद अमेरिका की सबसे बड़ी फाइटर जेट्स मैन्युफैक्चरर कंपनी लॉकहीड मार्टिन ने भी अब फैसला कर लिया है की वो भी अपने ऑफ टीचर्स का एक सबसे इम्पोर्टेन्ट कॉम्पोनेन्ट भारत के अंदर मैनुफैक्चर करेंगी। रेफरेन्स के लिए आपकी स्क्रीन के ऊपर डायनॉमिक टाइम्स के आर्टिकल का स्क्रीनशॉट है जिसके मुताबिक टाटा लॉकहीड मार्टिन के बीच एग्रीमेंट हो गया है, जिसके बाद दोनों मिलकर भारत के अंदर फाइटर जेट्स के विंग्स को मैनुफैक्चर करेंगे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, टाटा और लॉकहीड मार्टिन ने साल 2010 में एक जॉइंट वेंचर की शुरुआत की थी, जिसका नाम है टाटा लॉकहीड मार्टिन एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड। इनका मैन्युफैक्चरिंग प्लांट हैदराबाद में स्थित है। इस मैन्युफैक्चरिंग प्लांट में हर साल सुपर हर्कुलस सी 130 मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्रॉफ्ट के कई पार्ट्स यहाँ पर मैनुफैक्चर होते हैं।
अब तक 200 से ज्यादा सी 130 जे के लिए पार्ट्स इसी मैन्युफैक्चरिंग प्लांट से गए है। लॉकहीड मार्टिन ने जॉइंट वेंचर टीएल मेल को इसके विंग्स का प्रोटोटाइप बनाने का एक ऑर्डर दिया था, जो भारत में सक्सेस फुल्ली बन गया है और उसने सारे टेस्ट को पास कर लिया है। इसलिए अब टीएल मेल के जॉइंट वेंचर को फाइटर विंग्स के 29 चिपसेट का एक ऑर्डर प्लेस किया जा रहा है, जिसमें ऐडिशनल ऑर्डर्स का भी क्लॉज़ जोड़ा गया है। टाटा लॉकहीड मार्टिन के जॉइंट वेंचर को इनकी डिलिवरी ज़ 2025 में शुरू करनी है। अगर ये प्लान सक्सेसफुल हुआ तो फ्यूचर में लॉकहीड मार्टिन और भी पार्ट्स भारत के अंदर मैनुफैक्चर कर सकती है। लॉकहीड मार्टिन ने आगे कहा है की ऑफ टीचर्स के विंग्स मैनुफैक्चर करने में कई सारी टेक्नोलॉजिकल कॉम्प्लेक्स सिटीज होती है।
और मैं हमारे जॉइंट वेंचर टीएल माल को कॉन्ग चुलेट करना चाहता हूँ। 1622354 डिजिट्स बनाने वाली लॉकहीड मार्टिन से लेकर राफेल फाइटर जेट्स मैन्युफैक्चर करनेवाली डिसॉल्ट एविएशन रशिया की वकील मशीन बिल्डिंग डिजाइन ब्यूरो जो आस 400 बजाय डिफेंस सिस्टम को मैन्युफैक्चर करती है, ये सारे जीतने भी बड़े बड़े डिफेन्स वेपन्स और मैन्युफैक्चरर्स है। फिर चाहे वो सबमरीन्स बनाती हो, नेवल चिप्स या फिजिक्स मैनुफैक्चर करते हो। ये सारी बड़ी बड़ी कम्पनीज़ अपने हथियार के सभी पार्ट्स खुद ही मैनुफैक्चर करती है।
कई सारी छोटी छोटी कंपनी से स्पेयर पार्ट्स और हथियारों में फिट किए जाने वाले कॉम्पोनेंट्स परचेस करते हैं और फिर अपनी असेंबली लाइन में उनको वहाँ पर लाकर असेंबल किया जाता है। ऐसा नहीं है कि स्पेयर पार्ट्स और कॉम्पोनेंट्स ये बड़ी बड़ी कम्पनीज़ बस अपने देश की कंपनी से ही खरीदती है। ये स्पेयर पार्ट्स दुनिया भर की फ्रेंड्ली कंट्री से परचेस किये जाते हैं। अब ओब्विअस्ली बात है कि अमेरिका चाइना की किसी कंपनी को फाइटर जेट्स के विंग बनाने का ऑर्डर तो देगा नहीं। नाटो देशों का पूरा एक इकोसिस्टम है, जहाँ पर हर एक देश कोई ना कोई हथियार या उसका कोई ना कोई पार्ट या कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर करता है।
अब खुशी की बात है की भारत भी इस इकोसिस्टम में अब धीरे धीरे घुस रहा है, जिसका हमें बहुत ही बड़ा फायदा होगा। नाटो देशों के पास लो कॉस्ट मैन्युफैक्चरिंग के मामले में बड़े ही कम ऑप्शन्स है क्योंकि लो कॉस्ट मैन्युफैक्चरिंग के साथ साथ डिफेन्स मैन्युफैक्चरिंग के लिए भी एक इन्फ्रास्ट्रक्चर चाहिए होता है। लो कॉस्ट मैन्युफैक्चरिंग तो बांग्लादेश, वियतनाम या अफ्रीका के किसी और देश में मिल जाएगी, लेकिन डिफेंस इंडस्ट्री के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं मिलेगा और भारत यहाँ पर एक परफेक्ट कैंडिडेट बनकर उभर रहा है। खैर, आपको दोनों में से कौन सा देश ज्यादा पसंद है? फ्रांस या फिर अमेरिका? नीचे कमेंट करके अपनी राय जरूर बताएं।